Saturday 24 August 2013

Shree Nikhileshwaranada Kavacham श्री निखिलेश्वरानंद कवचं

आत्म रक्षा व साधनात्मक शक्ति रक्षा

जैसे ही कोई व्यक्ति पुलिस मे भर्ती होता है, इसकी खबर चोरों, लुटेरों आदि असामाजिक तत्वों को शीघ्र हो जाती है। और वो सभी उस पर कड़ी नजर रखने लगते हैं कि जैसे ये पुलिस हमारे विरुद्ध कोई कार्यवाई करता है तो किस तरह उसे रास्ते से हटाया जा सके, मारा जा सके।
यही बात आध्यात्मिक जगत में भी लागू होती है। जब कोई जातक दीक्षित होता है या साधनात्मक मार्ग पर चलता है तो सभी की सभी नकारात्मक शक्तियाँ, अहंकारी दुष्ट प्रवृत्ति के साधक, सिद्ध, तान्त्रिक आदि भी ऐसे साधकों से ईर्ष्या एवम वैर भाव रखने लगते हैं। और मौका पाने पर ऐसे साधकों को परेशान करते हैं, उसके आस पास के वातावरण को प्रतिकूल करने के लिये उल्टे-सीधे प्रयोग करते हैं और तो और उनकी साधनात्मक ऊर्जा को चुराने की भी कोशिश करते हैं। ऐसा काम ज्यादातर  साधक के साथ क्रियाशील शक्तियाँ ही करती हैं। अधकचरे तान्त्रिकों के चक्कर में तो वो तब आता है जब वो निःस्वार्थ भाव से लोगों की मदद करता है या फिर विशुद्ध साधनात्मक वातावरण में प्रवेश करता है जैसे कि सन्यास जीवन में। और भी बहुत सारी स्थितियाँ हैं।
वैसे तो साधक के लिए गुरुमंत्र ही सर्वोपरि है। परन्तु साधनात्मक जीवन में बहुत सारे पहलुओं से आयामों से परिचित होना पड़ता है, उनका ज्ञान रखना पड़ता है। यहाँ तक कि साधक के आस पास स्वयं उसके परिवार आदि में भी ऐसे लोग होते हैं जो उसकी आध्यात्मिक ऊर्जा का अवशोषण कर लेते हैं। कभी-कभी उनके पूर्वज आदि भी ऐसा करते हैं। परन्तु इन सब बातों का पता एक सामान्य साधक को नहीं चलता। पूर्व जन्मों के कर्म दोष भी हो सकते हैं। गुरु भी हर एक तथ्य को आपको प्रत्यक्ष रूप से नहीं बता सकते क्योंकि शिविरों आदि में उन्हे अत्यधिक ऊर्जा लगानी पड़ती है, मेहनत करनी पड़ती है, स्वयं की भी साधना करनी पड़ती है। आखिर उनके भी तो गुरु हैं। इसलिए आपको अपने गुरु द्वारा रचित साहित्यों और अन्य आध्यात्मिक व साधनत्मक ग्रंथों का भी अध्ययन करना चाहिए। या फिर अपने वरिष्ठ गुरु भाईयों या साधकों की सहायता लेनी चाहिए।
खैर ये विषय तो इतना गहन और लम्बा है कि एक ग्रन्थ ही तैयार हो जाए। अब आते हैं मूल बिंदु पर। मैं यहाँ पर आध्यात्मिक रूप से कु्छ परम कवचों को दे रहा हूं। जिनका यदि आप उपयोग करते हैं तो न केवल आप पूर्ण रूपेण विपक्ष द्वारा किए जा रहे तंत्र मंत्रादिकों से सुरक्षित रहेंगे अपितु आप जो भी साधनात्मक शक्तियाँ अर्जित करते हैं वो भी पूर्ण रूपेण कवचित रहेगी। कोई भी उनका हरण नहीं कर पायेगा।
और एक महत्वपूर्ण बात वो यह है कि आप ये न सोचें कि मात्र निर्देशित संख्या में कवच या मंत्र पाठ कर लिया और हो गया आपको वो कवच सिद्ध। ऐसा नहीं होता। क्योंकि ये कलियुग है और आजकल का रहन-सहन, खान-पान, चिन्तन-मनन, कार्य-व्यापार आदि ऐसा हो गया है कि मनुष्य के न चाहते हुये भी कुछ ऐसे दुष्कर्म हो जाते हैं जिनका उन्हे खुद ही पता नहीं होता। अतः साधनात्मक ऊर्जा धीरे-धीरे क्षीण होती जाती है। क्योंकि आप समाज में रह कर साधना कर रहे हैं। कोई सन्यासी तो हैं नहीं कि २४ घंटे साधनात्मक चिन्तन ही हो। और न ही उन जैसा सधा हुआ सिद्ध शरीर जो किसी भी साधनात्मक शक्ति की ऊर्जा को एक ही बार में भलीभांति अपने आप में समाहित कर सके, पचा सके। अतः आप किसी भी साधना को करते हैं तो ये आवश्यक है कि आप मूल साधना को कम-से-कम ४-५ बार करें। और उसके बाद उसकी निरंतरता बनाये रखने के लिये नित्य कवच या मंत्र का कुछ मात्रा में पाठ या जप करें। विशेषतया कवच या स्तोत्र आदि की सिद्धि १००० पाठ से हो जाती है। और इस तरह ४-५ बार में कुल चार या पाँच हजार पाठ सम्पन्न हो जाते हैं। कुछ कवचों और स्तोत्रों में उनकी पाठ संख्या दी गयी होती है। इन सबके के बाद ही आप कवच या स्तोत्र में लिखे प्रयोग आदि को करने की पात्रता अर्जित करते हैं। नीचे मैं कुछ उच्च कोटि के कवचों को दे रहा हूं । इन कवचों के मध्यम से आप दुष्कर साधनाओं को भी सम्पन्न कर सकते हैं। श्मशान आदि की साधना में इनके द्वारा चक्र निर्माण और उसके बाद स्वयं के शरीर का कीलन जिससे कोई भी दुष्ट या नकारात्मक शक्तियाँ आपका अहित न कर पायें, आप कर सकते हैं।
यहाँ और आने वाले पोस्ट में निम्न कवच होंगे। आप किसी की भी साधना कर सकते हैं।
१. श्री निखिलेश्वरानंद कवच
२. तांत्रोक्त श्री गुरु कवच
३. श्री दत्तात्रेय वज्र पंजर कवच
१. श्री निखिलेश्वरानंद कवच
विनियोगः  ॐ अस्य श्री निखिलेश्वरानंद कवचस्य श्री मुद्गल ऋषिः, अनुष्टुप छंदः, श्री गुरुदेवो निखिलेश्वरानंद परमात्मा देवता, महोस्तवं रूपं च इति बीजम, प्रबुद्धम निर्नित्यम इति कीलकम, अथौ नेत्रं पूर्णं इति कवचम, श्री भगवत्पाद निखिलेश्वरानंद प्रीति द्वारा मम सम्पूर्ण रक्षणार्थे, स्वकृतेन आत्म मंत्रयंत्रतंत्र रक्षणार्थे च पारायणे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यासः 
श्री मुद्गल ऋषये नमः शिरसि।  
अनुष्टुप छंदसे नमः मुखे।  
श्री गुरुदेवो निखिलेश्वरानंद परमात्मा देवतायै नमः ह्रदि।  
महोस्तवं रूपं च इति बीजाय नमः गुह्ये।  
प्रबुद्धम निर्नित्यम इति कीलकाय नमः पादयोः।  
अथौ नेत्रं पूर्णं इति कवचाय नमः सर्वांगे,
श्री भगवत्पाद निखिलेश्वरानंद प्रीति द्वारा मम सम्पूर्ण रक्षणार्थे, स्वकृतेन आत्म मंत्रयंत्रतंत्र रक्षणार्थे च पारायणे विनियोगाय नमः अंजलौ।
करन्यासः 
श्री सर्वात्मने निखिलेश्वराय अंगुष्ठाभ्यां नमः।
श्री मंत्रात्मने पूर्णेश्वराय तर्जनीभ्यां नमः।
श्री तंत्रात्मने वागीश्वराय मध्यमाभ्यां नमः।
श्री यंत्रात्मने योगीश्वराय अनामिकाभ्यां नमः।
श्री शिष्य प्राणात्मने कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
श्री सच्चिदानंद प्रियाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
ह्रदयादिन्यासः
श्रीं शेश्वरः ह्रदयाय नमः।
ह्रीं शेश्वरः शिरसे स्वाहा।
क्लीं शेश्वरः शिखायै वषट्।
तपसेश्वरः कवचाय हुं।
तापेशेश्वरः नेत्रत्रयाय वौषट्।
एकेश्वरः अस्त्राय फट्।
मूल कवचम्ः
शिरः सिद्धेश्वरः पातु ललाटं च परात्परः। 
नेत्रे निखिलेश्वरानंदः नासिका नरकान्तकः ॥१॥
कर्णौ कालात्मकः पातु मुखं मंत्रेश्वरस्तथा। 
कण्ठं रक्षतु वागीशः भुजौ च भुवनेश्वरः ॥२॥
स्कन्धौ कामेश्वरः पातु ह्र्दयं ब्रह्मवर्चसः। 
नाभिं नारायणो रक्षेत ऊरुं ऊर्जस्वलोऽपि वै ॥३॥
जानुनि सच्चिदानंदः पातु पादौ शिवात्मकः। 
गुह्यं लयात्मकः पायात् चित्तं चिन्तापहारकः ॥४॥
मदनेशः मनः पातु पृष्ठं पूर्णप्रदायकः। 
पूर्वं रक्षतु तंत्रेशः यंत्रेशः वारुणीं तथा ॥५॥
उत्तरं श्रीधरः रक्षेत दक्षिणं दक्षिणेश्वरः। 
पातालं पातु सर्वज्ञः ऊर्ध्वं में प्राणसंज्ञकः ॥६॥
कवचेनावृतो यस्तु यत्र कुत्रापि गच्छति। 
तत्र सर्वत्र लाभः स्यात् किंचिदत्र न संशयः ॥७॥
फलश्रुतिः
यं यं चिन्तयते काम तं तं प्राप्नोति निश्चितं। 
धनवान बलवान लोके जायते समुपासकः ॥८॥
ग्रह भूत पिशाचाश्च यक्ष गर्न्धव राक्षसाः। 
नश्यन्ति सर्व विघ्नानि दर्शनात् कवचेनावृतम् ॥९॥
य इदं कवचं पुण्यं प्रातः पठति नित्यशः। 
सिद्धाश्रमः पदारूढ़ः ब्रह्मभावेन भूयते ॥१०॥
॥ हरिः ॐ तत्सत् श्री निखिल ब्रह्मार्पणमस्तु ॥
पाठ विधिः
१००० पाठ का संकल्प लें। गुरु पूजन व गणेश पूजन कर पाठ आरम्भ करें। पहले पाठ में मूल कवच और फलश्रुति दोनों का पाठ करें। बीच के पाठों में मात्र मूल कवच का पाठ करें। और अंतिम पाठ में पुनः मूल कवच और फलश्रुति दोनों का पाठ करें। आप १००० पाठ को ५ या ११ या २१ दिनों में सम्पन्न कर सकते हैं। इस तरह इस सम्पूर्ण प्रक्रम को आप ५ बार करें। तो कुल ५००० पाठ सम्पन्न हो जायेंगे।
प्रयोग विधिः
नित्य किसी भी पूजन या साधना को करने से पूर्व और अन्त में आप कवच का ५ बार पाठ करें। रोगयुक्त अवस्था में या यात्राकाल में स्तोत्र को मानसिक रूप से भावना पूर्वक स्मरण कर लें।
इसी तरह यदि आप श्मशान में किसी साधना को कर रहें हों तो एक लोहे की छ्ड़ को कवच से २१ बार अभिमंत्रित कर अपने चारों ओर घेरा बना लें। और साधना से पूर्व व अन्त में कवच का ५-५ बार पाठ कर लें। जब कवच सिद्धि की साधना कर रहे हो उस समय एक लोहे की छ्ड़ को भी गुरु चित्र या यंत्र के सामने रख सकते हैं। और बाद में उपरोक्त विधि से प्रयोग कर सकते हैं।

सदगुरुदेव भगवान श्री निखिलेश्वरानंद से सबके लिए कल्याण कामना करता हूं।
॥ श्री गुरुचरणार्पणमस्तु ॥
॥ क्षमस्व परमेश्वरः ॥


2 comments:

  1. Its a great gesture to share such an extremely inevitable kavach of Shri Sadgurudev Paramhansh Swami Nikhileshwaranandji - Subhash

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  2. Its a great gesture to share such an extremely inevitable kavach of Shri Sadgurudev Paramhansh Swami Nikhileshwaranandji - Subhash

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