Wednesday 21 August 2013

प्रवेश ज्ञान-2

पूजनोपासना प्रकार
ब्रह्मर्षि नारद ने पूजा साधना के निम्न प्रकार बताये हैं-
१. अभाविनी साधनाः सामग्री आदि के अभाव मे मन अथवा जल से पूजन अभाविनी साधना कहलाती है।
२. दौर्बोधी साधनाः ज्ञानाभाव मे की गयी पूजा दौर्बोधी साधना कहलाती है।
३. सौतिकी साधनाः सकाम होने पर मानसी एवं निष्काम होने पर सर्व प्रकार से पूजन किया जा सकता है। यह सौतिकी साधना है।
४. आतुरी साधनाः रोगयुक्त होने पर पूजन आदि नही किया जाता। केवल सूर्य या देव दर्शन तथा मानसिक रूप से मूल मंत्र जप किया जाता है। रोग समाप्ति पश्चात शुद्ध होकर गुरु पूजन कर उनसे पूजा विच्छेद दोष निवारण हेतु प्रार्थना कर पूजन आरम्भ करना चाहिए।
५. त्रासी साधनाः जो व्यक्ति तत्काल उपलब्ध अथवा मानसोपचार से पूजन करता है उसे सर्व सिद्धि की प्राप्ति होती है। इसे त्रासी साधना कहते हैं जो समस्त पूजनों में सर्वोत्तम है और जिसे उच्च कोटि के साधक प्रयोग करते हैं।
विशेषः जो स्वयं पूजन आदि की सारी समग्री को एकत्र कर पूजन करता है उसे पूर्ण फल की प्राप्ति होती
है। अन्य व्यक्तियों के द्वारा एकत्रित होने पर पूर्ण फल नहीं मिलता।
शास्त्रों में ब्रह्मणों के लक्षण एवं साधकों के आवश्यक कृत्य
१. ब्राह्मण उसे नहीं कहते जो कि ब्राह्मण कुल में जन्म ले अपितु ब्राह्मण उसे कहते हैं जो त्रिकाल सन्ध्या करता है। उदाहरण के लिए आप ब्रह्म ऋषि विश्वामित्र को ले सकते हैं जो थे तो क्षत्रिय परन्तु गायत्री उपासना से उन्होने ब्रह्मर्षि पद को प्राप्त कर लिया।
२. ब्राह्मणों के लिए आवश्यक है कि वे नित्य त्रिकाल सन्ध्या वन्दन करें। सन्ध्या वन्दन मे सूर्य पूजन व गायत्री जप आते हैं।
३. प्रत्येक साधक को चाहिए कि वे ब्रह्म मुहूर्त में गुरु पूजन कर गुरु मन्त्र के पश्चात गायत्री मन्त्र जप करें और सूर्य को अर्घ्य दें। सम्भव हो तो तीनों कालों में करें।
४. जब किसी विशेष देव शक्ति की उपासना कर रहें हो तब उस देवशक्ति से सम्बन्धित गायत्री का जप भी मूल गायत्री मंत्र के बाद सन्ध्या में करें।
५. सन्धया वन्दन आप किसी कुएं, नदी, तालाब या फिर घर पर भी कर सकते हैं।
६. चाहे आप साधना कर रहे हों या नहीं, सन्ध्या वन्दन न त्यागें।
७. अशक्त होने पर या यात्रा काल में आप समस्त सन्ध्या को मानसिक रूप से कहीं पर भी बैठ कर सम्पन्न कर सकते हैं। इसमें कोई दोष नहीं होता।




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