Tuesday 20 August 2013

।। श्रीगुरुमण्डल वन्दनम् ।।


वन्देअहं सच्चिदानंदं भेदातीतं सदागुरुं।
नित्यं पूर्णं निराकारं निर्गुणं स्वात्म: स्थितम्।।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरु: साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नम:।।
ध्यान मूलं गुरो मूर्ति: पूजा मूलं गुरो पदं।
मंत्र मूलं गुरोर्वाक्यं मोक्ष मूलं गुरु कृपा।।
गुरु कृपा हि केवलम। गुरु कृपा हि केवलम। 
गुरु कृपा हि केवलम। गुरु कृपा हि केवलम।
श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नम:।
त्वाम् चरणे मम सर्वस्व समर्पयामि।
स्वगुरुवे श्रीनिखिलेश्वराय नम:। परमगुरुवे श्री सच्चिदानंदाय नम:। 
श्री पारमेष्ठि गुरुवे नम:। श्री सर्वगुरुमण्डलाय नम:।

ऊँ सहनाववतु सह नौ भुनक्तु सहवीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा वि​द्विषावहै।।

ऊँ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवाव शिष्यते।।

हरि: ऊँ सहस्रशीर्षा: पुरुष: सहस्राक्ष: सहस्रपात।
सभूमि गूँ सर्वतस्पृत्वा अत्त्यत्तिष्ठदशाङगुलम्।।
ऊँ नमो भगवते परमहंसाय महायोगेश्वराय श्रीनिखिलेश्वराय इहावह इहावह इहागच्छ इहागच्छ  अस्मिन   'श्री निखिलं शरणं मम' नामानि ब्लॉगं इहतिष्ठ इहतिष्ठ सन्निधापितो भव सन्निरुद्धो भव सम्मुखो भव वरदो भव।। त्वाम् चरणे अनन्त कोटि वन्दनं समर्पयामि।। सर्व मानस निर्मितं उपचारं कल्पयामि। अनया कृतया पूजनं श्रीगुरुवे प्रियन्तां न मम्।।

ऊँ लं नमस्ते गणपतये ऊँ गणानां त्वा गणपति गूँ हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति गूं हवामहे निधिनां त्वा निधिपति गूँ हवामहे वसो मम आहमजानि गर्भधमा त्वजासि गर्भधम्।। ऊँ भूभुर्व: स्व: सिद्धिबुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नम:। इहावह इहावह इहागच्छ इहागच्छ  अस्मिन   'श्री निखिलं शरणं मम'  नामानि ब्लॉगं इहतिष्ठ इहतिष्ठ सन्निधापितो भव सन्निरुद्धो भव सम्मुखो भव वरदो भव।। त्वाम् चरणे अनन्त कोटि वन्दनं समर्पयामि।। सर्व मानस निर्मितं उपचारं कल्पयामि। अनया कृतया पूजनं श्रीगणाधिराजाय प्रियन्तां न मम्।।


ह्रीं पराम्बिकायै नम:। ऊँ अम्बे अम्बिके अम्बालिके न मानयति कश्चन् ससत्यश्वक: सुभद्रिकां काम्पीलवासिनिम्।। ऊँ भूर्भुव: स्व: श्रीपराम्बिकायै गिरिनन्दिनि महागौर्यै नम:। इहावह इहावह इहागच्छ इहागच्छ  अस्मिन 'श्री निखिलं शरणं मम' नामानि ब्लॉगं इहतिष्ठ इहतिष्ठ सन्निधापिता भव सन्निरुद्धा भव सम्मुखी भव वरदा भव।। त्वाम् चरणे अनन्त कोटि वन्दनं  समर्पयामि।। सर्व मानस निर्मितं उपचारं कल्पयामि। अनया कृतया पूजनं श्रीजगदम्बिकायै प्रियन्तां न मम्।।

देव देव गुरुदेव पूजां प्राप्य करोति य:।
त्राहि त्राहि कृपासिन्धो पूजां पूर्णतरां कुरु।।
क्षमस्व मम् सर्वापराधं। क्षमस्व करुणानिधे।