श्री गायत्री तत्व चिंतन
अनेक साधक साधनाएँ करते
हैं। उन्हें शीघ्र सफलता की कामना होती है, परन्तु ऐसा होता नहीं। कारण— वे शक्ति के मूल में
नहीं जाते।
वे गुरु गुरु कहलाने
के अधिकारी नहीं हैं जो अपने शिष्यों को गुरु मंत्र के साथ गायत्री मंत्र नहीं प्रदान
करते। परंतु एक सद्गुरु अपने शिष्यों को गायत्री मंत्र भी गुरु दीक्षा के साथ अनिवार्य
रूप से प्रदान करते ही हैं। क्या आपने कभी ये चिंतन किया है कि ऐसा क्यों?
अनंत ब्रह्माण्ड में
ऐसा कोई भी नहीं जो गायत्री शक्ति का उल्लंघन या खंडन कर सके। स्वयं ब्रह्मा—विष्णु—शिव भी नहीं।
क्योंकि यह शक्ति समस्त दैवी शक्तियों, गुरुजनों, सिद्धों, महायोगियों आदि की भी आधारभूता
परमा शक्ति है। तभी तो फिर चाहे वे देव शक्तियां हों या मानव उनके लिए भी संध्या कर्म
परम आवश्यक है।
जिस का जो इष्ट होता
है वह उसी इष्ट का गायत्री मंत्र सन्ध्या काल में जप करता है। आप स्वयं सोचें प्रत्येक
देवी देवता के गायत्री मंत्र होते हैं यहां तक कि परम उग्र और तामसिक शक्तियों के भी।
ऐसा क्यों?
1. प्रत्येक दैव शक्ति
मूल गायत्री शक्ति से ही शक्ति ग्रहण करती है।
2. प्रत्येक दैव शक्ति
से सम्बन्धित गायत्री मंत्र एक तरह से उस शक्ति विशेष का आवाहन मंत्र होती है। जिससे
वो दैव शक्ति साधक के पास आने के लिए बाध्य होती ही है।
3. इसलिए प्रत्येक साधना
में ये आवश्यक है कि आप सन्ध्या काल में मूल गायत्री मंत्र के बाद इष्ट विशेष के गायत्री
मंत्र का भी जप अनिवार्य रूप से करे।
4. यदि साधना में विघ्न
आ रहे हों, सफलता शीघ्र नहीं प्राप्त हो रही हो तो आप पहले उस देव विशेष के गायत्री
मंत्र का अनुष्ठान करें। आप 24000 मंत्र जप या जितनी ज्यादा आप की सामर्थ्य हो (सवा
लाख का अनुष्ठान सर्वोत्तम होता है) करें। इसके बाद आप मूल साधना प्रारंभ करें। आप
को सफलता शत प्रतिशत मिलेगी ऐसा अनेकों साधकों का अनुभव है।
5. यदि आप कोई महा
उग्र भयंकर साधना करना चाहते हैं और आपको भय भी लगता है कि न जाने मेरे साथ कौन कौन
सी घटनाएं घटित होंगी, कैसे अनुभव होंगे? कहीं मेरी मृत्यु तो नहीं हो जायेगी आदि आदि।
ऐसी स्थिति में आप साधना की उग्रता को समझते हुए कम से कम 5 लाख मूल गायत्री मंत्र
के अनुष्ठान कर लें। और इसके तुरंत बाद उस साधना को आरंभ करें। यकीन मानिए वह उग्रात्मक
शक्ति आपको तनिक भी डरा नहीं सकती और तो और उसे अत्यंत सौम्य तरीके से आपके सामने उपस्थित
होना पडेगा वो भी पूरी शालीनता के साथ। इसके सुविख्यात उदाहरण प्रसिद्ध माधव निदान
के प्रणेता श्री माधवाचार्य जी हैं जिन्होंने कई वर्षों तक गायत्री साधना की परंतु
दर्शन न हो पाने के कारण वे अन्यत्र जाकर भैरव साधना में प्रवृत्त हुए और भैरव जी ने
तुरंत प्रसन्न हो उनसे वर मांगने को कहा। परंतु जब माधव जी ने आंखे खोली तो देखा सामने
तो भैरव जी हैं ही नही। तो उन्होंने कारण पूछा कि आप पीछे क्यों हैं सामने क्यों नहीं
आते। तब भैरव जी ने कहा मैं गायत्री साधक के सम्मुख् नहीं आ सकता क्योंकि उसके तेज
को सहन करने की शक्ति मुझमें नहीं है...... अस्तु।
6. मूल गायत्री साधना
से आपकी आध्यात्मिक शक्ति अत्यन्त प्रखर हो उठती है। यह आपमें ओज एवं साधनोचित ब्रह्मचर्य
की शक्ति का उद्भव करती है। मूलत: आप ये समझ लें कि इस साधना से आप आध्यात्मिक पथ पर
अत्यंत तीव्र गति से बढ़ने लगते हैं। परंतु हां मूल गायत्री मंत्र द्वारा आप भौतिक
सफलता या लक्ष्मी की प्राप्ति नहीं कर सकते। इस हेतु विशेष बीज मंत्रों का सम्पुटिकरण
करना पड़ता है जो कि एक अलग विधान है और इस पर कभी और चर्चा की जायेगी।
।। श्री गायत्र्यम्बार्पणमस्तु।।
।क्षमस्व पराम्बिके।
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