Tuesday 26 August 2014

स्वर्णाकर्षण भैरव मंत्र साधना-1

स्वर्णाकर्षण भैरव मंत्र साधना-1


यह साधना विशेष रूप से स्वर्ण की प्राप्ति कराती है। रसकर्म(पारद बंधन) की आधारभूत साधनाओं में से यह एक साधना है। इसके माध्यम से स्वर्ण बनाने की प्रक्रिया का ज्ञान साधक को हो जाता है और पारे को बांधने की क्रिया का भी ज्ञान हो जाता है।

विशेषः इस साधना के बाद ही साधक में ऐसी पात्रता जाती है कि वह किसी भी यंत्रमालादि मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा पूर्ण प्रामाणिकता के साथ कर सकता है।
इस साधना के अन्तर्गत बिन्दु हैं-    
           
स्वर्णाकर्षण भैरव मंत्र- इस मंत्र के ,२५,००० जप के तीन अनुष्ठान करने चाहिए। प्रत्येक अनुष्ठान ४० दिनों में सम्पन्न करें। दशांश हवन, तर्पण मार्जन करें। कुंवारी कन्याओं जो -१० वर्ष की हों, को भोजन दक्षिणादि प्रदान करें। यह कर्म भी तीनों अनुष्ठानों में अनिवार्य है।

स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र- इस स्तोत्र के अनुष्ठान काल में हि तीनों कालों में (प्रातः, मध्याह्न, सायं) १०-१० पाठ करें। प्रत्येक अनुष्ठान काल के बाद कुछ अन्तराल आप रख सकते हैं। परन्तु इस अन्तराल में इस स्तोत्र के पाठ आप करते रहेंगे। स्तोत्र पाठ तीनों अनुष्ठानों के अन्तिम दिन तक अनवरत चलता रहेगा।

स्वर्णाकर्षण भैरव रसकर्मसिद्धि स्तोत्र- प्रथम दोनों क्रियाओं के बाद आप इस स्तोत्र के नित्य १०८ पाठ कुल ४० दिनों तक करें।
इन साधनाओं के लिये आवश्यक सामग्रीः
. स्वर्णाकर्षण भैरव यंत्र . स्वर्णसिद्धि यंत्र . रुद्राक्ष माला (या पीली हकीक माला)।                                  
अथवा

पूर्ण चल-विधान के द्वारा प्राण प्रतिष्ठित शिवलिंग(कोई भी) या आप चाहें तो मिट्टी का स्वयं बना लें। या किसी पूजन सामग्री के दुकान से लेकर प्रतिष्ठित कर लें। प्राण प्रतिष्ठा की सम्पूर्ण शास्त्रोक्त पद्धति भी आने वाले ब्लाग में दूंगा।
यंत्रमालादि आदि आप जोधपुर गुरुधाम से मंगवा लें क्योंकि दूसरा यंत्र स्वर्णसिद्धि यंत्र केवल वहीं प्राप्य है(वर्तमान की मैं नहीं कह सकता)।

विनियोग अस्य श्रीस्वर्णाकर्षणभैरव महामंत्रस्य श्री महाभैरव ब्रह्मा ऋषिः, त्रिष्टुप्छन्दः, त्रिमूर्तिरूपी भगवान स्वर्णाकर्षणभैरवो देवता, ह्रीं बीजं, सः शक्तिः, वं कीलकं मम्दारिद्रय नाशार्थे विपुल धनराशिं स्वर्णं प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादिन्यासः 
श्री महाभैरव ब्रह्म ऋषये नमः शिरसि।
त्रिष्टुप छ्न्दसे नमः मुखे।
श्री त्रिमूर्तिरूपी भगवान स्वर्णाकर्षण भैरव देवतायै नमः ह्रदिः

ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये।
सः शक्तये नमः पादयोः।
वं कीलकाय नमः नाभौ।
मम्दारिद्रय नाशार्थे विपुल धनराशिं स्वर्णं प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे।

करन्यासः          
अंगुष्ठाभ्यां नमः। 
ऐं तर्जनीभ्यां नमः। 
क्लां ह्रां मध्याभ्यां नमः। 
क्लीं ह्रीं अनामिकाभ्यां नमः। 
क्लूं ह्रूं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। 
सं वं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।

हृदयादि न्यासः
आपदुद्धारणाय हृदयाय नमः। 
जामल वधाय शिरसे स्वाहा। 
लोकेश्वराय शिखायै वषट्‍। 
स्वर्णाकर्षण भैरवाय कवचाय हुम्।
मम् दारिद्र्य विद्वेषणाय नेत्रत्रयाय वौषट्‍। 
श्रीमहाभैरवाय नमः अस्त्राय फट्‍। 
रं रं रं ज्वलत्प्रकाशाय नमः इति दिग्बन्धः।

ध्यानमः  ध्यान मंत्र का पांच बार उच्चारण करें। जिसका हिन्दी में सरलार्थ नीचे दिया गया है। वैसा ही आप भाव करें।

ॐ पीतवर्णं चतुर्बाहुं त्रिनेत्रं पीतवाससम्। 
अक्षयं स्वर्णमाणिक्य तड़ित-पूरितपात्रकम्॥
अभिलसन् महाशूलं चामरं तोमरोद्वहम्। 
सततं चिन्तये देवं भैरवं सर्वसिद्धिदम्॥
मंदारद्रुमकल्पमूलमहिते माणिक्य सिंहासने, संविष्टोदरभिन्न चम्पकरुचा देव्या समालिंगितः।
भक्तेभ्यः कररत्नपात्रभरितं स्वर्णददानो भृशं, स्वर्णाकर्षण भैरवो विजयते स्वर्णाकृति सर्वदा॥

हिन्दी भावार्थ:श्रीस्वर्णाकर्षण भैरव जी मंदार(सफेद आक) के नीचे माणिक्य के सिंहासन पर बैठे हैं। उनके वाम भाग में देवि उनसे समालिंगित हैं। उनकी देह आभा पीली है तथा उन्होंने पीले ही वस्त्र धारण किये हैं। उनके तीन नेत्र हैं। चार बाहु हैं जिन्में उन्होंने स्वर्णमाणिक्य से भरे हुए पात्र, महाशूल, चामर तथा तोमर को धारण कर रखा है। वे अपने भक्तों को स्वर्ण देने के लिए तत्पर हैं। ऐसे सर्वसिद्धिप्रदाता श्री स्वर्णाकर्षण भैरव का मैं अपने हृदय में ध्यान व आह्वान करता हूं उनकी शरण ग्रहण करता हूं। आप मेरे दारिद्रय का नाश कर मुझे अक्षय अचल धन समृद्धि और स्वर्ण राशि प्रदान करे और मुझ पर अपनी कृपा वृष्टि करें।

मानसोपचार पूजन:

लं पृथिव्यात्मने गंधतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं गंधं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।
हं आकाशात्मने शब्दतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं पुष्पं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।
यं वायव्यात्मने स्पर्शतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं धूपं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।
रं वह्न्यात्मने रूपतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं दीपं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।
वं अमृतात्मने रसतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं अमृतमहानैवेद्यं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।
सं सर्वात्मने ताम्बूलादि सर्वोपचारान् पूजां श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।

अष्टापञ्चाशद (58) वर्णयुक्त मूल मंत्र :

ॐ ऐं क्लां क्लीं क्लूं ह्रां ह्रीं ह्रूं स: वं आपदुद्धारणाय अजामलवधाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण भैरवाय मम् दारिद्रय विद्वेषणाय  ह्रीं महाभैरवाय नम:।

विशेष: मंत्र में जो 'अजामल वधाय' पद है ये आपको अन्यत्र 'अजामल बद्धाय' के रूप में दृष्टिगोचर होगा। परन्तु बाद वाला अशुद्ध है। क्योंकि श्रीस्वर्णाकर्षण भैरव जी ने अजामल नाम के राक्षस का संहार(वध) किया था। इसलिए आप 'अजामल वधाय' ही पढें।
साथ ही 'क्लां क्लीं क्लूं' पद भी आपको 'क्लीं क्लीं क्लूं' के रूप में मिलेगा। परन्तु तंत्र ग्रंथों के अनुसार बीज का वर्णन इस प्रकार है दीर्घ काम त्रय बीजम्। अर्थात 'क्लां क्लीं क्लूं'। अत: जो दिया गया है वह शुद्ध है। आप मंत्र परिवर्तित न करें।

।।श्रीनिखिलार्पणमस्तु।।
।क्षमस्व परमेश्वर।

10 comments:

  1. pls give your contact number regarding this sadhana ....

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. लंड के पुदी

    ReplyDelete
  4. Please provide material cost on What's App 8130775864 sachin bansal from Delhi

    ReplyDelete
  5. Thanks. very useful and with the explanation and meaning

    ReplyDelete
  6. ऊं नम शिवाय शिव जी सदा सहाय

    ReplyDelete
  7. ऊँ दुदीच्‍याम फुदी पुदाय नम:
    यह मंत्र मुझे श्रीमाली गुरुदेव ने दिया था। परंतु इस मंत्र की सिद्धि कैसे करनी है, यह उन्‍होंने नहीं बताया था। कृपया इस मंत्र की सिद्धि के बारे में बताएं।

    ReplyDelete
    Replies
    1. अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण ही तुम ऐसा बकवास कर सकते हो। तुम्हारे प्रश्न से यह जाहिर होता है कि तुम्हारे पैदाइश में ही खोट था।

      Delete
  8. कृपया स्वर्ण कर्शन भैरव की हवन सामग्री बताने की कृपा करे.

    ReplyDelete
  9. बहुत ही अच्छा एक्सप्लेन करा है स्वर्णकार्षण भैरव के बारे मै 👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏

    ReplyDelete